ज्योतिष शास्त्र के अनुसार द्वादश भाव में मंगल अगर मिथुन, कन्या, तुला या वृष राशि के साथ होता है तब यह दोष पीड़ित नहीं करता है। मंगल दोष उस स्थिति में भी प्रभावहीन होता है जबकि मंगल वक्री हो या फिर नीच या अस्त। सप्तम भाव में अथवा लग्न स्थान में गुरू या फिर शुक्र स्वराशि या उच्च राशि में होता है तब मांगलिक दोष वैवाहिक जीवन में बाधक नहीं बनता।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार अगर सप्तम भाव में स्थित मंगल पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो कुण्डली मांगलिक दोष से पीड़ित नहीं होती। मंगल गुरु की राशि धनु अथवा मीन में हो या राहु के साथ मंगल की युति हो तो व्यक्ति अपनी पसंद के अनुसार किसी से भी विवाह कर सकता है क्योंकि वह मांगलिक दोष से मुक्त होता है। अगर जीवनसाथी में से एक की कुण्डली में मंगल दोष हो और दूसरे की कुण्डली में उसी भाव में पाप ग्रह राहु या शनि स्थित हों तो मंगल दोष कट जाता है। इसी प्रकार का फल उस स्थिति में भी मिलता है जब जीवनसाथी में से एक की कुण्डली के तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह राहु, मंगल या शनि मौजूद हों।