नया कार्य प्रारंभ करने के पहले में चंद्रमा का बल देखना जरूरी है
चंद्रमा किसी भी कुंडली का महत्वपूर्ण ग्रह है ।
चंद्रमा मन का कारक तो है ही लेकिन अगर कुंडली में चन्द्र अस्त या कमजोर हो तो समृद्धि और संपत्ति का भी नाश कर देता है इसी प्रकार नए कार्य की शुरुआत करते समय चन्द्रमा के बल को देखना जरूरी है
गर्भधारण, अन्नप्राशन, नामकरण, विद्यारंभ, पुंसवन यगोपवित, शादी विवाह आदि सभी 16 संस्कार उसके अलावा गृह आरंभ, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ, नौकरी आरंभ, जमीन, जायदाद, मकान खरीदना इत्यादि कार्य करने से पहले आपको अपना चंद्र बल जरूर देखना चाहिए।
शास्त्रों में ये समस्त कार्यों का प्रारंभ चंद्रमा के शुभ गोचर और बलवान होने पर ही करना सही माना गया है। गोचरीय ग्रहों का बलाबल जन्मस्थ चंद्र राशि से विचारना चाहिए।
उपरोक्त श्लोक में ‘चंद्रमा सर्व कार्येषु-प्रशस्ते’ इसलिए कहा गया है। क्योंकि मुहूर्त में चंद्रमा का फल सौ गुना होता है, इसलिए चंद्रमा का बलाबल अवश्य देखना चाहिए, क्योंकि अन्य ग्रह भी चंद्रमा के बलाबल के अनुसार ही शुभ या अशुभ फल देते हैं। अतः चंद्रमा की शुभता के बिना अन्य ग्रह शुभ फल नहीं देते हैं।
*मुहूर्त चिंतामणि की परंपरा के अनुसार
शुक्ल पक्ष में यदि चंद्रमा शुभ है तो सूर्य भी शुभ होता है। सूर्य के शुभ होने पर नेष्ट मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि ग्रह भी शुभ होते हैं।
जन्म राशि से (शुक्लपक्ष में) चंद्रमा का गोचर 1, 2, 3, 5, 6, 7, 9, 10 और ग्यारहवें स्थान में शुभ होता है।
इनके अतिरिक्त शेष भावों (4, 8, 12वें स्थान) का चंद्रमा अशुभ होता है। इसलिए शुभ मुहूर्त में 4, 8, 12 वां चंद्र त्याज्य है। कुछ आचार्य जन्म राशिस्थ गोचरीय चंद्रमा को यात्रा मुहूर्त में अशुभ मानते हैं।
गुरु द्वारा दृष्ट चंद्रमा को शुभ बल प्राप्त होता है।
अतः ध्यान रहे जब भी आप कोई नया कार्य या शुभ कार्य प्रारंभ करें तो उससे पहले आप अपनी जन्म राशि से गोचर के चंद्रमा की स्थिति जरूर देखलें। और गोचर का चंद्रमा यदि 4, 8 व 12 वें भाव में है तो उस दिन किसी भी प्रकार का शुभ व मांगलिक कार्य करने से बचना चाहिए।।
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डॉ वाणी वेदायनी
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