संरेखण पद्धति

हमारे जीवन में जब भी हमारे मन के विपरीत कोई स्थिति परिस्थिति या व्यक्ति आता है, विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न होती है और सहज मानवीय प्रवृति के अनुसार हम सारा दोष सामने वाले पर थोपते चले जाते हैं। विचारणीय यह है कि क्या वास्तव में सामने वाला ही उत्तरदायी है! क्या वास्तव में उसका स्वभाव दोषपूर्ण है ! यदि ऐसा है तो सभी के साथ उसका व्यवहार समान होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं होता। फिर किसी एक व्यक्ति के साथ ही ऐसी स्थिति क्यों? और तब आवश्यक हो जाता है आत्मनिरीक्षण। आत्मनिरीक्षण अर्थात स्व विश्लेषण; वैदिक ज्योतिष में प्रथम भाव स्वयं को इंगित करता है। जब हमें सामने वाले से पीड़ा मिल रही हो तो हम सामने वाले की कमियों को गिनने और सुधारने के प्रयास में लग जाते हैं जबकि सुधार की आवश्यकता अपने व्यक्तित्व अर्थात प्रथम भाव को होती है। वैदिक ज्योतिष में कुल बारह भाव होते हैं और प्रत्येक भाव को नियंत्रित करने की क्षमता उसके विपरीत भाव में निहित है। यदि हम प्रथम भाव को ठीक करते हैं तो सप्तम स्वतः ठीक हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि आपका व्यक्तित्व धार्मिक या आध्यात्मिक है, योगी हैं तो आपसे जुड़ने वाले लोग भी लगभग उसी प्रवृति के होंगे, आप भोगी हैं तो आपके सर्किल में भोगियों की संख्या अधिक होगी। इसी प्रकार दूसरा भाव वाणी का भाव है, संचित धन का भाव है। वाणी पर नियंत्रण रखने वाले या मितभाषी व्यक्ति और धन प्रबंधन को महत्व देने वाले व्यक्ति के अष्टम भाव के नकारात्मक परिणाम अपने आप कम हो जाते हैं। अष्टम भाव मृत्यु तुल्य कष्ट का भाव है। तीसरा भाव प्रयास और संघर्ष का भाव होता है। तीसरे के ठीक सामने नौवां भाव/ भाग्य भाव होता है । भाग्य को ठीक करना अपने हाथ में नहीं लेकिन यदि व्यक्ति संघर्ष और प्रयास को नहीं छोड़ता और कर्म में लगा रहता है तो भाग्य को भी निर्मित कर सकता है क्योंकि भाग्य किसी न किसी क्षण किए गए कर्म का ही परिणाम होता है। चौथा भाव प्रजा/ जनता/ जन समुदाय का होता है और इसके ठीक सामने दसवां भाव आता है जो नाम और प्रसिद्धि का भाव है ,राजनीति का भाव है। अगर चौथा भाव व्यक्ति ठीक कर ले और अपने पक्ष में एक विशाल जन समुदाय खड़ा कर ले तो नाम और प्रसिद्धि प्राप्त करना कौन सी बड़ी बात है भला! पांचवा भाव इष्ट अनुकम्पा का भाव है , मंत्र का भाव है ,सीखने का भाव है। इसके ठीक सामने ग्यारवां भाव मनोकामना पूर्ति का भाव है, लाभ का भाव है। व्यक्ति मंत्र जप और इष्ट अनुकम्पा से किसी भी इच्छा की पूर्ति कर सकता है यदि ग्यारहवां भाव ठीक करना है तो सारा फोकस पंचम भाव पर होना चाहिए। छठा भाव सेवा या नौकरी का भाव है और इसके ठीक सामने बारहवां भाव हानि का या खर्चे का। हानि और खर्चों से बचना है तो खुद को सेवा में लगा दीजिए। #Astrologer Vani

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Astrologer Vani has Specialization in Vedic KP and Bhrigu Nandi Nadi System of Astrology Several...

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